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रोहिंग्या मुसलमान का भारत में शरण व बौद्ध धर्म के साथ आतंकवाद शब्द का जुड़ना कितना तर्कसंगत ?

अफ्फान नोमानी
 9 सितम्बर  2017  को देश के बड़े अंग्रेजी अखबार द हिन्दू के संपादकीय में रोहिंग्या मुसलमान व भारत के सन्दर्भ में लिखा है कि " रोहिंग्या नागरिकताहीन लोग है, उनके साथ व्यवहार करते समय भारत को इसका कारक होना चाहिए . भारत को अवश्य जबाव देना चाहिए कि यदि एक नागरिकताहीन लोग इधर-उधर भटक रहा है तो उन्हें कहाँ भेजने की उम्मीद है ? "
हाल में द हिन्दू में ही शिव विश्वनाथन ने रोहिंग्या मुसलमानों पर हुए अत्याचार की कड़ी निंदा करते हुए लिखा कि एक प्रखर पड़ोसी देश होने के नाते भारत को इस मसले पर गंभीरता से लेना चाहिए व शरण देने पर भारत सरकार को सोच विचार करना चाहिए . ऑल इंडिया यूनाइटेड मोर्चा व मजलिस -ए -मुशावरत के महासचिव मौलाना अब्दुल हमीद नोमानी ने News24 से बात करते हुए कहा कि इतिहास गवाह है कि विश्व में कहीं भी मजलूमो पर अत्याचार हुआ है तो भारत हमेशा उनके साथ खड़ा हुआ है व अपने खुले दिल से अपनाया है, गांधी- नेहरू की विदेश नीति व भूतकाल में बड़ी तादाद में पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, बंगलादेश व अन्य देशों से आये हिन्दू को शरण देने का हवाला देते हुए भारत सरकार से परेशान हाल रोहिंग्या मुसलमानों के लिए भी शरण देने की अपील की तो देश के कई संगठनों के द्वारा धरना प्रदर्शन में रोहिंग्या मुसलमानों के लिए शरण देने की आवाज उठी जबकि दुसरी तरफ कई बीजेपी नेता व आरएसएस के प्रवक्ता ने रोहिंग्या मुसलमानों को आतंकवादी करार देते हुए हिन्दू- मुसलमान का मुद्दा बनाकर जहर घोलने का काम शुरू कर दिया जिसके लिए वह जाने जाते हैं . विभिन्न देशों से आये अन्य धर्म के लोगों की तरह रोहिंग्या मुसलमानों को भी शरण देगें या नहीं यह भारत सरकार पर निर्भर करता है लेकिन हिन्दू- मुसलमान का मुद्दा बनाकर समाज में जहर घोलना कितना उचित है ?
सवाल है कि जिनके पास रहने के लिए घर नहीं, खाने के लिए भोजन नहीं, पहनने के लिए कपड़े नहीं उन्हें आतंकवादी करार दिया जा रहा है, क्या इस तरह के बात करने वाले हत्यारों के साथ खड़ा है या नहीं ? मेरे लिए जैसे इस्लाम के साथ आतंकवाद शब्द जोड़ना गलत है वैसे ही बौद्ध आतंकवाद शब्द कहना गलत होगा क्योंकि दुनिया का कोई भी धर्म हत्या की इजाज़त नहीं देता . हत्यारे को हत्यारा ही कहा जाय . किसी धर्म के साथ आतंकवाद शब्द जोड़ देने से समस्याओं का हल होने के बजाय बिगड़ जाता है . जैसे ही बौद्ध धर्म के साथ आतंकवाद शब्द जोड़ेगे कहीं न कहीं आप भारत में रहने वाले बौद्धमत के मित्र जिसके साथ आपका उठना -बैठना होता है उसमें जरूर दरार पैदा हो जाएगा , हत्यारों के खिलाफ लड़ाई मजबूत होने के बजाए कमजोर हो जाएगी . ऐसा नहीं है कि सभी बौद्धमत के मानने वाले अमनपसंद नहीं है . यह लड़ाई वर्मा में जुल्म सितम करने वाले हत्यारों के खिलाफ हर अमनपसंद के लोगों के लिए है . बौद्धमत के सबसे बड़े धर्मगुरु दलाई लामा का खामुश रहना बेहद अफसोसनाक तो है ही इससे बड़ा अफसोसनाक तो यह है कि कई बड़े मुस्लिम देश का चुप्पी साधना चिंताजनक है . अभी भी बड़ा सवाल है कि इन जटिल समस्याओं से निपटा कैसे जाये ताकि विश्व में मानवता बची रहे .
लेखक अफ्फान नोमानी, रिसर्च स्कालर व स्तम्भकार हैं

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