Skip to main content

गोडसेवादी क्या जाने शाहरुख परिवार के वतनपरस्ती को ?

      अफ्फान नोमानी 
     लेक्चरर व लेखक 
मैंने आज तक कभी भी बॉलीवुड अभिनेता व अभिनेत्री के बारे में कुछ नहीं लिखा है । वजह ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है। मेरे नजदीक समाज व देश के लिए नए क्रीतिमान स्थापित करने वाले ही असल हीरों है। फ़िल्मी जगत के हीरों काल्पनिक जबकि वास्तविक दुनिया के हीरों असल है। शाहरुख़ खान भी उसी काल्पनिक दुनिया के हीरों में ही आते है। लेकिन एक इंसान का अपना देश व समाज होता है। देश में बसने वाले सभी उतना ही देशभक्त होता है जितना की देश का प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति। वर्त्तमान में एक विशेष जाति धर्म के पहचान व नाम के साथ जिस तरह से पूरी कौम व मिल्लत को कटघरे में लाने की कोशिश हो रही है यक़ीनन इस मुल्क के लिए बहुत अफसोसजनक है।  
हालांकि शाहरुख खान जैसे किसी भी अभिनेता के लिए धर्म ज्यादा मायने नहीं रखता है । एक फ़िल्मी एक्टर के लिए धर्म की कसौटी को पाबंदी के साथ मानना मुश्किल है। लेकिन देश में मौजूद सांप्रदायिक तत्वों के लिए नफ़रत व सांप्रदायिक माहौल खड़ा करने के लिए शाहरुख खान जैसे मुस्लिम नाम ही काफी है। अगर व्यक्ति देश व दुनिया में मशहूर हो तो हंगामा खड़ा करना और ज्यादा आसान हो जाता है।  

शाहरुख खान हो या उसका पुत्र या उनके परिवार का कोई भी व्यक्ति अगर कोई अपराध करता है तो वो मामला अपराध की श्रेणी में आता है।  ऐसे मसअले के हल के लिए देश में कानून है। कोर्ट में इसका फ़ैसला होगा। लेकिन मौजूदा वक्त में देश में कुकुरमुत्ते की तरह पनपे सांप्रदायिक तत्वों को शाहरुख या उनके परिवार को देशद्रोही कहने का हक़ किसने दिया? बिडंबना देखिये ऐसे गोडसेवादीयों ने महात्मा गांधी तक को भी नहीं बख्सा।  गांधी जयंती के दिन प्रधानमंत्री मोदी,  गांधी जी के मूर्ति पर फूल बरसा रहे थे और भक्त ट्विटर पर गोडसे जिंदाबाद का ट्रेंड चला रहे थे।  भला ऐसे झूठे राष्ट्रवाद का चोला ओढ़े गोडसेवादीयों को क्या मालूम की भारत छोड़ो आंदोलन में सबसे युवा स्वतंत्रता सेनानी में से एक थे शाहरुख खान के पिता मीर ताज मोहम्मद खान ।  
पेशावर में जन्मे मीर ताज मोहम्मद खान ने 16 साल के उम्र में विभाजन से पहले पेशावर छोड़ कर दिल्ली आ गए. खान अब्दुल गफ्फार खान के आंदोलन से जुड़कर जंगे आज़ादी में भाग ले लिया. 
मीर ताज मोहम्मद खान अपने जमाने के जाने-माने वकील थे। रियासत में दिलचस्पी ने उन्हें स्वाधीनता संग्राम से जोड़ दिया। वे दो बार जेल भी गए। मिजाज के मीर ताज सचमुच मीर थे। यार-दोस्तों के साथ एक बार उन्होंने कंचनजंगा पर्वत की चढ़ाई की।  कद-काठी ताज मोहम्मद खान की ऐसी थी कि के.आसिफ की फिल्म मुगले-आज में उन्हें मानसिंह की भूमिका का प्रस्ताव मिला था। ताज मोहम्मद खान ने तड़ाक से ना कर दी। मीर ताज मोहम्मद खान के अनुसार सिनेमा यानी नौटंकी। ताज मोहम्मद खान को क्या खबर थी कि उनके साहबजादे एक दिन इसी नौटंकी से जमाने की नाक में नकेल डाल देंगे।
मीर ताज मोहम्मद खान बहुत ही शिक्षित व्यक्ति थे. ताज मोहम्मद खान एम.ए. व एल.एल. बी के साथ हिन्दी, कश्मीरी, पश्तो, अंग्रेजी, इतालवी, उर्दू, पंजाबी, फारसी तमाम भाषाएँ फर्राटे से बोलते थे। शाहरुख ने बहुभाषा ज्ञान तो नहीं, पर वाचालता पिता से उधार ली है। वकालत पढ़े ताज मोहम्मद खान  ने स्वाधीनता आंदोलन में भाग लिया। दिल्ली में कुछ बच्चों को आग से बचाने के लिए उन्हें पुरस्कार स्वरूप एक मैडल भी जीता था। यह तमगा वे अक्सर बाल शाहरुख को दिखाया करते थे। ताज मोहम्मद खान ने कभी अपने नवाबजादे को बंदिशों में नहीं बाँधा.  जिसका जिक्र शाहरुख खान भी कई कार्यकर्मो में कर चुकें है. ताज मोहम्मद खान  बला के भुलक्कड़ इंसान थे। शाहरुख को याद है कई बार उन्होंने अपने वालिद को टॉयलेट-सीट पर बैठकर उबले अंडे खाते देखा था। ताज मोहम्मद खान यह भी भूल जाते थे कि यह उनका सिंहासन नहीं है। एक बार तो ताज मोहम्मद खान  बगैर पतलून पहने दफ़्तर जाने लगे, तो बेगम साहिबा ने याद दिलाया। शाहरुख के पिता एक खानदारी रईस परिवार से आए थे। मगर दिल्ली में संघर्ष करना पड़ा।
वकालत में रुचि नहीं ली, व्यवसाय चलता नहीं। अपनी बेटी शहनाज (शाहरुख की बहन) को उन्होंने शहजादी की तरह पाला। शहनाज उम्र में शाहरुख से पाँच साल बड़ी है। मीर ताज मोहम्मद खान की कैंसर से हुई मृत्यु ने शाहरुख को बुरी तरह तोड़ दिया। 19 सितंबर 1981 को  मीर ताज मोहम्मद ने आखिरी साँस ली। इसके पहले कई रात जागकर शाहरुख और शहनाज ने पिता को लम्हा-लम्हा मौत के आगोश में जाते देखा था। पिता की मृत्यु के साथ 14 - 15 साल के उम्र में शाहरुख ने अपना सबसे अच्छा दोस्त  और सरपरस्त खो‍ दिया।

Comments

Popular posts from this blog

बेगूसराय पर अन्तिम विश्लेषण: जनता का रुख किस ओर ? :- अफ्फान नोमानी

11 अप्रैल 2019 को बेगुसराय पर लिखे लेख के 17 दिन बाद यह मेरा दुसरा विश्लेषण है . आज से 17 दिन पहले बेगूसराय का माहौल अलग था जब कुछ जाने माने विश्लेषकों का विश्लेषण 2014 के चुनाव व जाति पर आधारित था जिसमें कन्हैया को तीसरे नंबर का उम्मीदवार बताया गया था लेकिन अब माहौल कुछ अलग है , सर्वप्रथम कन्हैया ने हर वर्ग के युवाओं व कुछ राजनीतिक समझ रखने वाले को लेकर जिला व प्रखन्ड स्तर पर 100-100 का समूह बनाकर डोर टु डोर कम्पेन करने का पहला प्लान बनाकर बेगूसराय के भूमिहार, मुस्लिम, दलित व यादव जाति के मिथक तोड़ने का पहला प्रयास किया । कन्हैया ने खुद व अपने समर्थकों को जनाब तनवीर हसन साहब पर निजी टिप्पणी करने से परहेज कर लगातार भाजपा पर प्रहार किया जिसकी वजह से मुसलिम पक्षों का झुकाव बढ़ने लगा जिसमें शिक्षक व युवा वर्गों व का समर्थन मिलना शुरू हुआ । वर्तमान में बेगूसराय के मुस्लिम कन्हैया व तनवीर हसन में बटे हुए। तनवीर हसन के लिए बाहर से आये समर्थकों ने मुस्लिम लोबि का हव्वा कुछ ज्यादा ही खड़ा कर दिया जिससे अन्य समुदाय का आकर्षण घट गया। 2014 के चुनाव में तनवीर हसन को मुस्लिम समुदाय का पुरा व या...

हैदराबाद: भाग्य लक्ष्मी मंदिर से भाग्यनगर तक कितना झूठ कितना सच ?

:-अफ्फान नोमानी मेरे पास डेक्कन इतिहास से जुड़े तीन किताबें हैं.  1. History of the Deccan, Author:- J.D.B. Gribble. 2. A Guide To The Heritage Of Hyderabad: The Natural and the Built, Author:- Madhu Vottery. 3. The Deodis of Hyderabad- a lost heritage, Author:- Rani Sharma.     डेक्कन इतिहास की ये क़िताब दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा प्रमाणिक मानी जाती  हैं. भाग्य लक्ष्मी मंदिर नाम का कोई मंदिर इस इतिहास की क़िताब में मौजूद ही नहीं हैं. योगी आदित्यनाथ ने जिस मंदिर के नाम पर हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर की बात की हैं वो मंदिर भाग्य लक्ष्मी मंदिर ही हैं जो अभी वर्त्तमान में चारमीनार के पूर्व में एक मीनार के कोने में मौजूद हैं. आज तेलंगाना बीजेपी के नेता जो भाग्यनगर की बात कर रहे है वो इस मंदिर के नाम पर ही कर रहे हैं  न की नवाब मुहम्मद कुली क़ुतुब शाह की पत्नी भाग्यवती के नाम पर. कुछ मीडिया संस्थानों ने नवाब मुहम्मद कुली क़ुतुब शाह की पत्नी भाग्यवती से ही जोड़कर स्टोरी तैयार किया जिसे लोगो ने बहुत शेयर किया. उर्दू नाम वाले कुछ लोगो ने अपनी दादी मानकर ख़ुशी में शेयर कि...

गांधी के हत्यारे व तिरंगे को पैरों तले रौंदने वालों के वंशज मदरसों से देशभक्ति होने के सबूत मांग रहे :- अफ्फान नोमानी

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा  मदरसों में स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में होने वाले कार्यक्रमों की वीडियोग्राफी कराने के निर्देश जारी करना सरकार की तरफ से यह  पहला मौका जरूर है लेकिन आरएसएस व आरएसएस द्वारा समर्थित हिन्दू संगठनों द्वारा इस तरह के सवालात कई बार उठाया गया है जो कोई नई बात नहीं है लेकिन सबसे बड़ी दुर्भाग्य की बात तो यह है कि आज की तारीख में  भारतीय मुसलमानों व मदरसों की देशभक्ति  पर वही लोग सवाल उठा रहे हैं  जिनके पूर्वजों व संगठनों का भारत छोड़ो आंदोलन  व आजादी  की लड़ाई में कोई अहम भूमिका नहीं रहा है। ये वही लोग थे जिन्होंने 1948 में तिरंगा को पैरों तले रौंद दिया था।  स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ख़ुशी का इज़हार  करते हुवे  अंजुमन इस्लाम कॉलेज की छात्राएं सिर्फ दो किताबें:-  पहला आरएसएस के दुसरे सरसंघचालक एम एस गोलवालकर की किताब " बंच ऑफ़ थॉट्स " आज़ादी के अठारह साल बाद 1966 में प्रकाशित हुवी , बाद के एडिशन में भी वही बाते है जो मेरे पास जनवरी 2011 का ताजा  एडिशन मौजूद है और दुसरा वर्तमान में 2017 में प्रका...